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खाद्य प्रसंस्करण

मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

आपने कई बार अखबारों और विज्ञापनों में पढ़ा होगा कि स्वास्थ्य के लिए बेहद सतर्क लोग कुकुरमुत्ता (कवक) यानि मशरूम (Mushroom) को निरंतर इस्तेमाल में लेते हैं। ऐसे ही अखबारों में छपी हेड-लाइन से प्रभावित होकर हरियाणा के 18 वर्षीय किसान विकास वर्मा (Vikas Verma) ने भी मशरूम की खेती करने के बारे में विचार बनाया। लेकिन शुरुआत में कृषि में काम आ रही आधुनिक विधियों का कोई ज्ञान ना होने की वजह से, पहले ही साल कम उम्र में ही विकास को 14 लाख रुपए का नुकसान झेलना पड़ा। इतना बड़ा नुकसान किसी भी युवा किसान का हिम्मत तोड़ने के लिये काफी साबित होता है, लेकिन विकास वर्मा ने ऐसी परिस्थितियों में अपने खेत और मशरूम की खेती उगाने की प्रक्रिया में कुछ संस्थागत बदलाव किए और उसी की बदौलत आज वह हर साल 50 लाख रुपए तक मुनाफा कमा पा रहे हैं। विकास बताते हैं कि आज उनके द्वारा अपनाई जा रही तकनीक को, उनके गांव एवं आसपास के जिलों में कई किसान भाई सीखने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ लोग तो काफी सफल भी हो गए हैं। एक किसान परिवार में जन्मे विकास, बारहवीं कक्षा के बाद अपने दादा और पिता की तरह परंपरागत कृषि प्रणाली से उगाने वाले गेहूं, बाजरा और दूसरे धान की फसल से अलग हटकर कुछ करने की सोच रखते थे। इसी सोच पर काम करते हुए इन्होंने अपने परिवार वालों को उच्च शिक्षा छोड़कर कृषि में पूरा ध्यान लगाने की बात बताई, शुरुआत में कुछ नोकझोंक के बाद परिवार वाले विकास के समर्थन के लिए राजी हो गए।


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जब अपनी पढ़ाई के दौरान ही विकास अपने गांव से चंडीगढ़ जा रहे थे, तभी रास्ते में ही सोनीपत के एक क्षेत्र में इन्होंने मशरूम की खेती होती देखी और जब पूछताछ करने की कोशिश की तो पता चला कि वह किसान मशरूम की खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा पा रहा है। लेकिन, विकास को जानकर आश्चर्य हुआ कि आखिर क्यों दूसरे कई किसान इस क्षेत्र में मशरूम नहीं ऊगा रहे हैं, जब की एक किसान इतना मुनाफा कमा पा रहा है। इस सवाल का जवाब विकास को खुद ही मिल गया जब उन्होंने पहले ही साल में परंपरागत रूप से मशरूम की खेती की और उन्हें बड़ा नुकसान झेलने को मिला। साल 2014 में राज्य सरकार के कृषि विभाग के अंतर्गत कार्य करने वाले कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेकर, विकास भी मशरूम की खेती के उत्पादन में हाथ आजमाने की तैयारी कर चुके थे। आज विकास 'कंपनी कानून 2013' के तहत रजिस्टर्ड 'वेदांता मशरूम प्राइवेट लिमिटेड' (Vedanta Mushrooms (opc) Private Limited) नाम की एक सफल कंपनी भी चलाते है, जोकि मशरूम से तैयार होने वाले उत्पादों को सही दामों में लोगों तक पहुंचाने में सफल रही है। विकास ने बताया कि कृषि कैरियर के शुरुआती दिनों में, घर में जमा पैसों से और बैंक से लोन लेकर उन्होंने 14 लाख रुपए की राशि इकट्ठा की, इस पैसे की मदद से उन्होंने मशरूम उगाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बैग और एक यूनिट की स्थापना की, लेकिन जल्दबाजी में किए गए प्रयासों से विकास को बुरी तरह धक्का लगा। जब विकास ने अपनी खेती की विफलता के बारे में पूरा रिसर्च किया, तो पता चला कि उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया कंपोस्ट खाद मशरूम की खेती के लिए बिल्कुल भी लाभदायक नहीं रहा और इसी कंपोस्ट खाद की वजह से विकास को इतना अधिक नुकसान उठाना पड़ा। जब विकास ने अपने खेत में जैसे-तैसे तैयार हुई कुछ मशरूम को बाजार में बेचने की कोशिश की, तब भी उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सौ रुपये प्रति किलो की मांग रखने वाले विकास को कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटी ना होने की वजह से, अपनी मेहनत से तैयार की गई फसल को औने पौने दामों में पचास रुपए प्रति किलो की दर से बेचना पड़ा।


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अपनी गलतियों से सीख कर उन्होंने कृषि विभाग के कुछ वैज्ञानिकों की मदद ली और मशरूम की खेती से कई दूसरे प्रकार के वैल्यूएटेड उत्पाद बनाने की शुरुआत की। दूसरे सीजन के शुरुआती दिनों में विकास ने खेत से तैयार मशरूम को पहले सुखाकर उसका पाउडर बनाया और फिर उससे कई प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पेय-पदार्थ (Health drinks), बिस्कुट और पापड़ जैसे मार्केट में बिकने वाले प्रोडक्ट तैयार किए। विकास बताते है कि मशरूम से तैयार की गई हेल्थ ड्रिंक टीबी, थायराइड और ब्लड प्रेशर से जूझ रहे मरीजों के लिए काफी लाभदायक साबित हुआ, इसी वजह से जहां वह 100 रुपए प्रतिकिलो में मशरूम बेचने को लेकर संघर्ष कर रहे थे, वही उनके द्वारा तैयार उत्पाद एक हजार रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में आसानी से बिक रहे थे। इसी एक साल में विकास ने कुल 35 लाख रुपए का मुनाफा कमाया। विकास ने बताया कि पहले उन्होंने पंजाब के लुधियाना शहर में कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट जोड़ा और आज वह दिल्ली में रहने वाले मशरुम प्रेमियों की मांग को भी पूरा कर रहे हैं।


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एक बार खुद को सफलता मिलने के बाद विकास ने अपने ज्ञान को दूसरे किसानों तक पहुंचाने के लिए भी काफी प्रयास किए। विकास वर्मा का मानना है कि आप केवल तभी विचारों से बड़े और अच्छे व्यक्ति बन सकते है, यदि आप अपने समाज के बुरे समय में भी उनके साथ खड़े रहे और उन्हें नई वैज्ञानिक विधियों से मदद करने की सोच रखें। पिछले 6 सालों में कुल 15000 से ज्यादा किसानों को मशरूम उत्पादन की नई तकनीक के माध्यम से फायदा पहुंचा चुके विकास बताते हैं कि, वर्तमान में वह कई खाद्य प्रसंस्करण संस्थाओं (Food processing organisation) में लगभग 3000 किसानों को प्रत्यक्ष रूप से मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दे रहे है। हालांकि विकास इस दुविधा को भी समझते हैं कि उन्ही की मेहनत की बदौलत आने वाले समय में मशरूम का उत्पादन बढ़ने से किसानों को होने वाले मुनाफे में कमी आ सकती है, इसीलिए वह भारत के दूसरे राज्यों और अलग-अलग हिस्सों में मशरूम से तैयार उत्पादों के लिए नए मार्केट की खोज की शुरुआत भी कर चुके है।


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पिछले साल 2021 में ही उन्होंने अपना कस्टमर बेस बनाना भी शुरू किया है और अब स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रही कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां विकास से तैयार उत्पाद सीधे ही खरीद कर विदेशों में बेच रही है। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए विकास बताते है कि शुरुआत में उनके पास किसी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता नहीं थी, लेकिन फिर भी लोन लेकर उन्होंने कृषि क्षेत्र में कुछ नया करने की सोच रखते हुए एक बार विफलता मिलने के बाद भी आज वह अपने आसपास के क्षेत्र के सबसे सफलतम किसानों में गिने जाते है।


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आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को विकास वर्मा जैसे प्रगतिशील किसानों की कहानी सुनकर, कृषि से जुड़ी नई तकनीकों को इस्तेमाल करने की प्रेरणा मिली होगी और भविष्य में आप भी ऐसे ही प्रगतिशील किसान बनकर, स्वास्थ्यवर्धक लोगों की मांग को पूरा करने में अपना पर्याप्त सहयोग प्रदान करने के अलावा, अच्छा मुनाफा कमाने में भी सफल हो पाएंगे।
बेबीकॉर्न उत्पादन की नई तकनीक आयी सामने, कम समय में ज्यादा मुनाफा

बेबीकॉर्न उत्पादन की नई तकनीक आयी सामने, कम समय में ज्यादा मुनाफा

पिछले कुछ सालों से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग विभाग (MINISTRY OF FOOD PROCESSING INDUSTRIES) के द्वारा भारत के किसानों को कई सलाह दी गई है, जिससे कि इस सेक्टर को सुदृढ़ किया जा सके और प्रगति के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि हासिल की जा सके। इसी की तर्ज पर सब्जी और खाद्य उत्पादों के लिए कई बार नई एडवाइजरी भी जारी की जाती है।

बेबी कॉर्न की खेती के फायदे

मक्का या भुट्टा (Maize) की ही एक प्रजाति बेबीकॉर्न (Baby Corn) को जिसे शिशु मक्का भी कहा जाता है, को उगाकर भी भारत के किसान अच्छा खासा मुनाफा कमाने के साथ ही एक स्वादिष्ट और पोषकता युक्त उत्पाद को तैयार कर सकते है। 

बेबी कॉर्न एक स्वादिष्ट पोषक तत्व वाली सब्जी होती है जिसमें कार्बोहाइड्रेट,आयरन, वसा और कैल्शियम की कमी को पूरी करने की क्षमता होती है। कुछ किसान भाई घर पर ही बेबीकॉर्न की मदद से आचार,चटनी और सूप तैयार कर बाजार में भी बेचते है। 

पिछले 2 सालों में थाईलैंड और वियतनाम जैसे देशों ने भारत से सबसे ज्यादा बेबी कॉर्न की खरीददारी भी की है और आने वाले समय में भी इसकी डिमांड बढ़ती हुई नजर आ रही है। 

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बेबी कॉर्न की फसल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे भी बिल्कुल मक्का की तरह ही उगाया जाता है, परंतु साधारण मक्का की अपेक्षा 3 से 4 गुना तक अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसकी खेती का विकास बहुत तेजी से होता है।

युवा किसान बेबीकॉर्न के उत्पादन में काफी सफल साबित हुए है। बेबी कॉर्न हमारी उंगली के जैसे आकार का मक्के का एक भुट्टा होता है जिसमें 2 से 3 सेंटीमीटर सिल्क जैसे दिखाई देने वाले बाल निकले रहते है। 

भारत के खेतों में बेबी कॉर्न की लंबाई लगभग 6 से 10 सेंटीमीटर की होती है और अलग-अलग किस्म के अनुसार इसका उत्पादन कम या अधिक होता है। किसान भाई यह तो जानते ही है कि मक्का की खेती करने में बहुत समय लगता है, लेकिन बेबीकॉर्न एक अल्प अवधि वाली फसल होती है। 

इसके अलावा फसल को काटने के बाद प्राप्त हुए चारे को पशुओं के खाने में उपयोग लाया जा सकता है और उस चारे को काटने के बाद बची हुई जमीन को किसी दूसरी फसल के उत्पादन में उपयोग में लिया जा सकता है।

बेबी कॉर्न उगाने का समय

बेबी कॉर्न उत्पादन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे पूरे साल भर उगाया जा सकता है। आप इसे रबी या खरीफ दोनों ही प्रकार के मौसम में उगा सकते है और शहरी क्षेत्र के आसपास में उगाए जाने के लिए उचित जलवायु भी मिलती है। 

बेबी कॉर्न की खेती का समय अलग-अलग क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग होता है। दक्षिण भारत में तो इसे पूरे वर्ष लगाया जा सकता है, लेकिन उत्तर भारत में जलवायु की वजह से इसका उत्पादन फरवरी से नवंबर के बीच में बुवाई के बाद किया जाता है। 

इसके उत्पादन के लिए आपको नर्सरी पहले ही तैयार करनी होगी, जिसे अगस्त से नवंबर के बीच में तैयार किया जा सकता है। इस समय में तैयार की हुई नर्सरी सर्वोत्तम किस्म की होती है और उत्पादन देने में भी प्रभावी साबित होती है। 

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बेबी कॉर्न की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी व जलवायु

मक्का की खेती के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उपयोग में लाई जा सकती है। लेकिन दोमट मिट्टी को सर्वोत्तम मिट्टी माना जाता है, जिसमें यदि आर्गेनिक उर्वरक पहले से ही मिले हुए हो तो यह और भी अच्छी मानी जाती है। 

किसान भाइयों को अपनी मिट्टी की PH की जांच करवानी चाहिए, क्योंकि यदि आपके खेत की PH लगभग 7 के आसपास होती है तो बेबीकॉर्न उत्पादन सर्वाधिक हो सकता है। 

हल्की गर्म और नमी वाली जलवायु इस फसल के उत्पादन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों की मदद से तैयार की हुई कुछ संकर किस्में वर्ष में तीन से चार बार उगाई जा सकती है और इन्हें ग्रीष्म काल या फिर वर्षा काल में भी उत्पादित किया जा सकता है। 

बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए खेत की तैयारी व किस्मों का चयन

बेबी कॉर्न की खेती के लिए बुवाई से 15 से 20 दिन पहले गोबर की खाद का इस्तेमाल करे और पूरे खेत में उर्वरक के रूप में बिखेर देना चाहिए। कम अवधि और मध्यम ऊंचाई वाली संकर किस्म का चयन कर जल्दी परिपक्व होने वाली फसल का उत्पादन किया जा सकता है।

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि संकर किस्म के चुनाव के समय, अधिक फल देने वाली किस्में और उर्वरक की अधिक खुराक के प्रति सक्रियता तथा बांझपन ना होना जैसी विशेषता वाली किस्म को ही चुनें। वर्तमान में बेबी कॉर्न की कुछ हाइब्रिड उन्नत किस्में जैसे कि HIM-123, VL-42 और VL-मक्का-16 के साथ ही, माधुरी जैसी किस्मों का ही चुनाव करना होगा। 

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बेबी कॉर्न की बुवाई के लिए बीजोपचार व बीज दर

यदि आप अपने खेत में बीज को बोन से पहले उसका उपचार कर ले तो इसे कवकनाशी और कीटनाशकों से पूरी तरीके से मुक्ति मिल सकती है। बीजोपचार के दौरान दीमक से बचने के लिए फिप्रोलीन को 4 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से इस्तेमाल कर अच्छे से मिलाना चाहिए। 

यदि बात करें बीज की मात्रा की तो प्रति हेक्टेयर एरिया में लगभग 30 से 40 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है और इस बीज की बुवाई वर्ष में मार्च-अप्रैल, जून-जुलाई जैसे माह में की जा सकती है। 

यदि आप दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में रहते हैं, तो बेबीकॉर्न की पंक्तियों की दूरी 40 सेंटीमीटर रखें और दो पौधे के बीच की दूरी लगभग 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए, दूरी कम रखने का फायदा यह होता है कि बीच में जगह खाली नहीं रहती है, क्योंकि इसके पौधे आकार में बड़े नहीं होते हैं।

बेबी कॉर्न की खेती में खाद अनुपात

गोबर की खाद का इस्तेमाल 10 से 12 टन प्रति हेक्टेयर की दर से किया जा सकता है। इसके अलावा 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दर से इस्तेमाल करने से अच्छी उपज की संभावनाएं बढ़ जाती है।

यदि आप के खेत में नाइट्रोजन की कमी है तो 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया का भी उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

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बेबी कॉर्न की खेती में खर पतवार नियंत्रण

खरपतवार को रोकने के लिए पहले दो से तीन बार खुरफी से निराई करनी चाहिए, साथ ही इस खरपतवार को हटाते समय पौधे पर हल्की हल्की मिट्टी की परत चढ़ा देनी चाहिए जिससे कि अधिक हवा चलने पर पौधे नीचे टूटकर ना गिरे। कुछ खरपतवार नाशी जैसे कि एट्रेजिन का इस्तेमाल भी बीज बोने के 2 दिन के भीतर ही करना चाहिए। 

बेबी कॉर्न सिंचाई प्रबंधन

किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि बेबीकॉर्न फसल उत्पादन के दौरान जल प्रबंधन सिंचाई का भी ध्यान रखना होगा, इसीलिए पानी को मेड़ के ऊपर नहीं आने देना चाहिए और नालियों में पानी भरते समय दो तिहाई ऊंचाई तक ही पानी देना चाहिए। 

फसल की मांग के अनुसार वर्षा और मिट्टी में नमी रोकने के लिए समय-समय पर सिंचाई पर निगरानी रखनी होगी। 

यदि आप का पौधा युवावस्था में है और उसकी ऊंचाई घुटने तक आ गई है तो उसे पाले से बचाने के लिए मिट्टी को गिला रखना भी बहुत जरूरी है। 

बेबी कॉर्न कीट नियंत्रण

बेबी कॉर्न जैसी फसल में कई प्रकार के कीट लगने की संभावना होती है, इनमें तना भेदक, गुलाबी तना मक्खी जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती है, इनकी रोकथाम के लिए कार्बेनिल का छिड़काव जरूर करना चाहिए। 

वैसे तो कम अवधि की फसल होने की वजह से इसमें अधिक बीमारियां नहीं लगती है फिर भी इन से बचने के लिए टिट्रीकम जैसे फर्टिलाइजर का इस्तेमाल किया जा सकता है।

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बेबी कॉर्न की तुड़ाई

जब बेबीकॉर्न के पौधे से रेशमी कोंपल निकलना शुरू हो जाए तो दो से तीन दिन के भीतर ही सावधानी पूर्वक हाथों से ही इसे तोड़ना चाहिए, इस प्रकार आप के खेत में तैयार बेबी कॉर्न की फसल को प्रति हेक्टेयर की दर से 4 से 5 दिन में तोड़ा जा सकता है। 

आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई Merikheti.com के माध्यम से दी गई जानकारी से पुर्णतया सन्तुष्ट होंगे और अपने खेत में कम समय में पक कर तैयार होने वाली इस फसल का उत्पादन कर अच्छा खासा मुनाफा कर पाएंगे।

किसान रेल योजना (Kisan Rail info in Hindi)

किसान रेल योजना (Kisan Rail info in Hindi)

भारत सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने और कृषि उत्पादों, खासतौर से जल्दी खराब होने वाली उपज को सस्ते दरों पर, दूसरे राज्यों तक पहुँचाने के लिए परिवहन सुविधा प्रदान करने के उद्देश्य से किसान रेल योजना (Kisan Rail) चलाई है. किसान रेल की घोषणा वित्त मंत्री ने वित्त वर्ष २०२०-२१ के केंद्रीय बजट में की थी. वित्त मंत्री ने नेशनल कोल्ड सप्लाई चेन (National Cold Supply Chain) बनाने की घोषणा की थी और कहा था कि भारतीय रेलवे (Indian Railways) एक किसान रेल की शुरुआत करेगा. इस एकीकृत शीत-श्रृंखला को बढ़ावा देने और विकसित करने के लिए नेशनल सेंटर फॉर कोल्ड चेन डेवलपमेंट (National Center for Cold-Chain Development (NCCD)) की स्थापना की गई।

हालांकि एयरकंडिशन की सुविधा के साथ फल और सब्जियों को लाने ले जाने की सुविधा का प्रस्ताव पहली बार २००९-१० के बजट में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने किया था, लेकिन तब शुरुआत नहीं हो सकी थी. ७अगस्त २०२० को पहली बार भारतीय रेलवे ने किसान रेल सेवा शुरू की. पहली किसान रेल महाराष्ट्र के देवलाली से बिहार के दानापुर के बीच चलाई गई थी. इस ट्रेन से जल्द खराब होने वाले कृषि उत्पादों जैसे दूध, मांस, मछली, फल और सब्जियों को नासिक रोड, मनमाड, जलगांव, भुसावल, बुरहानपुर, खंडवा, इटारसी, जबलपुर, सतना, कटनी, मानिकपुर, प्रयागराज, पंडित दीन दायल उपाध्याय नगर, बक्सर और दानापुर तक पहुंचाया गया था.

वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा इस ट्रेन को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और केंद्रीय रेल व वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल नें हरी झंडी दिखाई थी. किसान रेल पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर संचालित किया जा रहा है. किसान रेल के जरिए सामान ढुलाई में करीब ५० फीसदी तक की सब्सिडी भी दी जाती है.

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने १००वीं किसान रेल को हरी झंडी दीखाई थी. उस मौके पर उन्होंने कहा था कि “किसानों की आमदनी बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम है. इससे देश के 80 फीसदी से अधिक छोटे और सीमांत किसानों को बड़ी शक्ति मिली है. कोल्ड स्टोरेज चेन के लिए भी यह मजबूती देने वाला कदम साबित होगा. किसी किसान के लिए कोई सीमा तय नहीं है. उत्पाद कम हो या ज्यादा, सब सही समय पर पहुंच सकेगा. महज ३ किलो अनार का पैकेट भी ट्रेन से भेजे गए. मुर्गी के १७ दर्जन अंडे भी इससे भेजे गए हैं. किसान रेल के जरिए छोटे किसानों को भी बड़ा बाजार दिया जा रहा है. पहले किसान रेल साप्ताहिक थी, लेकिन अब इस ट्रेन को सप्ताह में ३ दिन चलाया जा रहा है. बेहद कम समय में १००वीं किसान रेल चलना ये साफ करता है कि इससे किसानों को फायदा हो रहा है.’’

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अब तक १४०० से भी ज्यादा किसान रेलगाड़ियाँ चलाई जा चुकी हैं. ३ फ़रवरी '२०२२ को १०००वीं किसान रेल महाराष्ट्र के सादवा से दिल्ली के आदर्शनगर तक चलाई गयी थी, जिसके १८ पार्सल वैन सहित २३ डब्बे थे और इस रेलगाड़ी से ४५३ टन केला गंतव्य तक पहुँचाया गया था. अब तक १४ से ज्यादा राज्यों में किसान रेल चलाई जा रही है. किसानों को किसान रेल योजना से बहुत लाभ है.

  kisan rail 1000th trip flag off ceremony


मिलती हैं किसान रेल के भाड़े में सब्सिडी

खाद्य प्रसंस्करण और उद्योग मंत्रालय की तरफ से किसान रेल से फलों और सब्जियों के ट्रांसपोर्टेशन के माल भाड़ा पर वसूले जाने वाले टैरिफ पर ५०% की सब्सिडी दी जाती है. किसानों को यह सब्सिडी राशि तुरंत मिल जाती है, जिससे फसल के यातायात का खर्च आधा हो जाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, अगर सड़क मार्ग से ट्रांसपोर्टेशन लागत ७-८ रुपये प्रति किलोग्राम है, तो किसान ट्रेन के जरिए यह लागत २.८२ रुपये ही बैठती है. सड़क मार्ग की अपेक्षा इसका भाड़ा बहुत ही कम है, जिससे किसानों को अपना उत्पाद दुसरे जगह पर सुगमता से पहुँचाने का अवसर मिल रहा है.

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किसान रेल में कोल्ड-स्टोरेज की है सुविधा

कोल्ड स्टोरेज (Cold Storage) की सुविधा से संपन्न होती है किसान रेल, जिसके कारण जल्दी ख़राब होने वाले कृषि उत्पाद जैसे फल, सब्जियां, मछलियां और एसे दुसरे उत्पादों की गुणवत्ता बनी रहती है, वे ख़राब नहीं होते. सही समय पर मंडियों में पहुँच जाती हैं और उचित मूल्य भी मिल जाता है. किसान ट्रेन का परिचालन बिल्कुल सही समय से किया जाता है.

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किसान रेल से इन फसलों की होती है धुलाई

सब्जियों में शिमला मिर्च, केला, आलू, टमाटर, मिर्च, अदरक, लहसुन, प्याज, फूलगोभी, कीवी, वहीं फलों में संतरा, सेब, खरबूजे, अमरूद, पपीता, अनार, अंगूर को भेज सकते हैं. इसके अतिरिक्त फूल, डेयरी उत्पाद, अंडे और मछलियां भी किसान रेल द्वारा दुसरे जगहों पर भेजे जा सकते हैं. देश के कई राज्यों से भारी संख्या में किसान इसका फायदा ले रहे हैं.

बदलते मौसम और जनसँख्या के लिए किसानों को अपनाना होगा फसल विविधिकरण तकनीक : मध्यप्रदेश सरकार

बदलते मौसम और जनसँख्या के लिए किसानों को अपनाना होगा फसल विविधिकरण तकनीक : मध्यप्रदेश सरकार

केंद्र सरकार किसानों के लिए विभिन्न प्रकार की योजना बना रही है, जिससे न सिर्फ किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि इससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। हाल ही के दिनों में एक ऐसे योजना की शुरुआत हुई है, जिसको जान कर किसान हैरान रह जायेंगे। इस योजना में आपको बताया जायेगा कि अब एक साथ आप कैसे विभिन्न प्रकार की खेती कर सकते हैं ताकि आपकी आय बढ़कर तिगुना हो जाए। इस योजना का नाम है “फसल विविधिकरण(Crop Diversification)। इस बदलते समय और बढ़ते जनसँख्या के लिए यह फसल विविधिकरण योजना एक बहुत ही आवश्यक कदम है। इस योजना से न सिर्फ किसानों की आय बढ़ेगी, बल्कि यह उनके खेत का भी स्वास्थ्य ठीक करेगा जिससे अन्य फसलें भी अच्छे से उग सकेंगी। इस योजना पर केंद्र सरकार बहुत जोर दे रही है, लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि मध्य प्रदेश सरकार ने इस तरह की योजना की शुरुआत बहुत पहले कर दी थी, जिसमें धान, गेहूं और अन्य पारंपरिक खेती के अलावा सरकार अब फूल, सब्जी और मसाला की खेती पर काफी जोर दे रही है। इसके साथ-साथ फल पौधा रोपण और क्रॉप डायवर्सिफिकेशन पर भी सरकार नजर बनाये हुए है।

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गौरतलब है कि साल 2022-23 में 2 हज़ार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फल पौधा रोपण अभियान के तहत विभिन्न प्रकार के पौधे लगाये गए हैं, जिसमें आम, अमरुद, संतरा, निम्बू, काजू, अनार, ड्रैगन फ्रूट, स्ट्रॉबेरी, केला जैसे पौधे शामिल थे। इन फलों का उत्पादन शुरू हो चुका है। इसके अलावा सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में फसल विविधिकरण का उपयोग किया जा रहा है, खीरा, शिमला मिर्च, लौकी, भिन्डी और अन्य सब्जी का उत्पादन किया जा रहा है। आपको बता दे कि फसल विविधिकरण का उपयोग कर पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष सब्जी, मसाला और फूल के उत्पादन में 6.45 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। आपको मालूम हो कि इस योजना को और मजबूती प्रदान करने के लिए राज्य के 137 से अधिक नर्सरी को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा गया है, जिससे हजारों पौधे तैयार किए गए है। मध्य प्रदेश के उद्यानिकी और खाद्य प्रसंस्करण विभाग के कार्यों की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा की इस वर्ष कोल्ड स्टोरेज का 25 लाख मीट्रिक टन क्षमता वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। उसी समीक्षा बैठक में अधिकारियों को निर्देश दिया गया कि “एक जिला एक उत्पादन” के तहत बागवानी फसलो और उत्पादों की मार्केटिंग एक मिशन की तरह की जाएँ, जिससे किसानों को लाभ हो और पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिल सके।

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किसानों को मिलेगा प्रशिक्षण

मुख्यमंत्री ने अधिकारीयों को निर्देशित किया कि किसानों के विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाये, जिसमे उनको ड्रिप इर्रेगेशन (drip irrigation), जैविक बागवानी, माली प्रशिक्षण आदि के बारे में उनको बताया जाए ताकि उनकी आय बढे। इसके लिए जगह जगह प्रशिक्षण केंद्र व मुरौना में सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस प्रारंभ भी किया जाएगा। प्रदेश के दस जिलों को ग्रीन क्लस्टर हाउस के रूप में विकसत करने की भी बात कही गयी है, इसमें भोपाल, सीहोर, उज्जैन, रतलाम, नीमच, बड़वानी, खण्डवा, खरगौन जबलपुर और छिंदवाड़ा शामिल हैं। दस जिलों में बनेंगे ग्रीन हाउस क्लस्टर।

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प्रदेश में फसलों की उत्पादकता में वृद्धि और विविधीकरण, कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रयास, प्रमाणित जैविक उत्पादन में वृद्धि, कृषि एवं उद्यानिकी उत्पादों का मूल्य संवर्धन पर भी चर्चा की गयी।  बैतूल जिले में शेडनेट निर्माण का क्लस्टर विकसित किया गया है। प्रदेश के दस जिलों भोपाल, सीहोर, उज्जैन, रतलाम, नीमच, बड़वानी, खण्डवा, खरगौन जबलपुर और छिंदवाड़ा में ग्रीन हाउस क्लस्टर विकसित किए जाएंगे। इस साल सीहोर, ग्वालियर और मुरैना में इनक्यूबेशन सेंटर्स का भूमि-पूजन किया गया है। अतिरिक्त रोजगार के लिए मत्स्यपालन, रेशम पालन विकास और मधुमक्खी पालन के कार्यों को बढ़ावा देने की बात भी कही गयी है।
गेहलोत सरकार लाखों का अनुदान देकर अनाज प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करेगी

गेहलोत सरकार लाखों का अनुदान देकर अनाज प्रसंस्करण को प्रोत्साहित करेगी

राजस्थान मिलेट प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत राज्य की 100 मिलेट प्रोसेसिंग इकाइयों को कुल खर्च का 50% फीसद वहीं बाकी समस्त इकाईयों को 25% फीसद सब्सिडी उपलब्ध कराने की योजना है। आवेदन करने की प्रक्रिया भी बेहद सुगम है। वर्ष 2023 में सारा विश्व अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में मनाया जाना है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य मोटे अनाजों की पैदावार को बढ़ाके इसको लोगों के भोजन में स्थापित करना है। इस उद्देश्य के चलते मिलेट (Millet) की फूड प्रोसेसिंग (Food Processing) को प्रोत्साहित किया जा रहा है। केंद्र सरकार सहित राज्य सरकारों द्वारा भी मिलेट के स्टार्ट अप, व्यवसाय एवं प्रोसेसिंग इकाइयों को प्रोत्साहन प्रदान कर रही हैं। इन इकाईयों के अंतर्गत मोटे अनाजों से विभिन्न खाद्य उत्पाद निर्मित किये जाते हैं। बहुत सारे लोगों के लिए सीधे मोटे अनाजों का उपभोग करना सुगम नहीं होता है। परंतु, मिलेट्स द्वारा निर्मित स्नैक्स को आहार में लेना काफी सुलभ होता है। यह मिलेट्स के उपभोग में वृद्धि करने का सर्वाधिक कारगर उपाय होता है। इसी वजह से मिलेट की प्रोसेसिंग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी क्रम के बीच में राजस्थान सरकार के जरिए राजस्थान मिलेट प्रोत्साहन योजना भी जारी की गई है, जिसके अंतर्गत 25 से 50% फीसद अनुदान का प्रावधान होता है।

मिलेट प्रसंस्करण हेतु अनुदान प्रदान किया जाएगा

राजस्थान मिलेट्स प्रोत्साहन मिशन के अंतर्गत राज्य में 100 प्रसंस्करण इकाईयों को खर्च का 50% प्रतिशत सब्सिडी मतलब अधिकतम धनराशि 40 लाख रुपये उपलब्ध कराए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, बाकी बची प्रोसेसिंग इकाइयों को कुल खर्च पर 25% प्रतिशत सब्सिडी मतलब कि 50 लाख रुपये प्राप्त होंगे। अगर आप भी मिलेट्स के उत्पाद निर्मित करते हैं अथवा इसकी प्रोसेसिंग इकाई को स्थापित करने की सोच रहे हैं। तो आपको rajkisan.rajasthan.gov.in पर जाकर आवेदन करना होगा।

मिलेट प्रोत्साहन योजना का मुख्य उद्देश्य क्या है

राजस्थान सरकार की मिलेट प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत प्रदेश में बाजरा, ज्वार जैसे अन्य दूसरे छोटे अनाजों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने एवं प्रसंस्करण के माध्यम से राज्य को मिलेट हब के रूप में विकसित करने की तैयारी है। इस योजना के अंतर्गत 100 करोड़ रुपये के खर्च से आगामी वर्षों में 15 लाख कृषकों को लाभ पहुँचाने की तैयारी है। इसमें से अनुमानित 10 लाख लघु और सीमांत किसानों को 25 करोड़ रुपये की लागत से उन्नत किस्मों के बीजों की निशुल्क मिनी किट एवं 2 लाख कृषकों को 20 करोड़ के खर्च से सूक्ष्म पोषक तत्व एवं कीटनाशकों की किट छूट पर उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इसी योजना के अंतर्गत प्रथम 100 प्रोसेसिंग यूनिट हेतु 40 करोड़ रुपये की सब्सिडी का प्रवाधान है।
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जीरा और ईसबगोल हेतु भी करोड़ों की सब्सिडी देगी सरकार

राजस्थान सरकार के नवीन निर्देशों के अनुसार, राजस्थान खाद्य प्रसंस्करण मिशन के अंतर्गत जोधपुर संभाग में जीरो एवं ईसबगोल के निर्यात आधारित 100 प्रोसेसिंग इकाईयों को कुल लागत पर 50% फीसद सब्सिड़ी मतलब कि अधिकतम 2 करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता का प्रावाधान है। इसके अतिरिक्त, , झालावाड़ में संतरे की, जयपुर में टमाटर और आंवले की, कोटा, वारां, प्रतापगढ़ और चित्तौडगढ़ में लहसुन की बाड़मेर और जालोर में अनार की अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली और सवाई माधोपुर में सरसों की प्रसंस्करण इकाई के निर्माण हेतु भी 50% प्रतिशत अनुदान अथवा अधिकतम 2 करोड़ रुपये की सब्सिड़ी देने की योजना है।
पीएम मोदी ने बिहार के भोजपुर में हुए मिलेट्स आयोजन को लेकर किया ट्वीट

पीएम मोदी ने बिहार के भोजपुर में हुए मिलेट्स आयोजन को लेकर किया ट्वीट

बिहार राज्य के भोजपुर में दो दिवसीय मिलेट महोत्सव कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसके संबंध में प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट के जरिए से बताया है, कि भोजपुर का मिलेट महोत्सव लोगों के अंदर श्री अन्न के लिए जागरूकता को बढ़ावा देगा। बिहार में दो दिवसीय बाजरा महोत्सव आयोजित किया गया था। इस महोत्सव का आयोजन बिहार राज्य के भोजपुर जनपद में 28 फरवरी से लेकर 1 मार्च 2023 तक किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महोत्सव के लिए आज ट्वीट कर दिया है। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पशुपति कुमार पारस जी के एक ट्वीट के जवाब में प्रधानमंत्री ने ट्वीट करते हुए कहा है, कि भोजपुर का मिलेट महोत्सव लोगों में श्री अन्न के प्रति जागरूकता को बढ़ायेगा। इसके साथ ही यह देशवासियों में श्री अन्न को उनके खान-पान में शामिल करने हेतु प्रोत्साहित भी करेगा।

बिहार राज्य में मोटे अनाज की पैदावार अधिक होती है

आपको बतादें कि केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पशुपति कुमार पारस जी ने इस मिलेट महोत्सव का उद्घाटन किया था। इसी बीच उन्होंने कहा है, कि बिहार राज्य रागी,ज्वार, बाजरा एवं छोटे बाजरा की पैदावार के लिए जाना जाता है। वर्ष 2021-22 के चलते, बिहार राज्य ने 5.92 मिलियन अमेरिकी डॉलर भाव के 21,187.60 मीट्रिक टन बाजरा को विदेश भेजा है एवं भोजपुर सोरघम व छोटे बाजरा के स्त्रोतों का केंद्र है। ये भी पढ़ें: भारत सरकार ने मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किये तीन नए उत्कृष्टता केंद्र भोजपुर में आयोजित हुए दो दिवसीय कार्यक्रम के अंतर्गत कई सारे बाजरा-आधारित उत्पादों की प्रदर्शनी एवं बिक्री, बाजरा प्रसंस्करण पर सूचनात्मक सत्र, उद्योग के जानकारों व सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों, एसएचजी, भोजन में लगे एफपीओ के मध्य इंटरैक्टिव सत्र की भाँति गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला शम्मिलित थी। इसमें प्रचंड प्रतिक्रिया देखी गई, जिसमें 1,000 से ज्यादा प्रतिभागियों ने हिस्सेदारी दर्ज की। जिसके अंतर्गत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम, स्वयं सहायता समूह, किसान-उत्पादक संगठन, उत्पादक सहकारी समितियाँ आदि शामिल हैं।

भारत के इन राज्य और जनपदों में होगा मिलेट्स महोत्सव का आयोजन

केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पशुपति कुमार पारस ने ट्वीट में लिखा है, कि इस साल भारत के 20 राज्यों व 30 जनपदों में मिलेट महोत्सव का आयोजन किया जाना है। बतादें, कि इसी क्रम में आगामी मिलेट महोत्सव का आयोजन आगरा, उत्तर प्रदेश में किया जा रहा है। इस दो दिवसीय मिलेट महोत्सव का आयोजन 3 व 4 मार्च को आगरा के आरबीएस कॉलेज ऑडिटोरियम में संपन्न किया जायेगा।
भारत में अब भर जाएंगें अन्न भंडार, जाने सरकार किस योजना पर कर रही है काम

भारत में अब भर जाएंगें अन्न भंडार, जाने सरकार किस योजना पर कर रही है काम

भारत में काफी ज्यादा लोग कृषि में लगे हुए हैं, देश का काफी ज्यादा हिस्सा खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भारत में काफी जमीन उपजाऊ है, लेकिन जहां पर बंजर जमीन है वहां पर भी सरकार द्वारा अनेक तरह की योजनाएं चलाई जाती हैं ताकि वहां पर खेती की जा सके। किसान भी यहां पर खेती करने में कोई कसर नहीं रहने देते हैं और उत्पादन बढ़ाने के लिए रात दिन प्रयासरत रहते हैं। लेकिन फिर भी बहुत बार ऐसा होता है, कि किसानों को अपनी की गई मेहनत का फल पूरी तरह से नहीं मिल पाता है और किसी न किसी कारण से फसल बर्बाद हो जाती है या फिर उम्मीद के अनुसार उत्पादन नहीं हो पाता है। इस चीज के कई कारण है, लेकिन जलवायु परिवर्तन उनमें से एक है। इस तरह की समस्याओं से निपटने के लिए ही भारत सरकार ने एक योजना बनाने के बारे में सोचा है। माना जा रहा है, कि इस योजना के बाद भारत में अन्न भंडार हमेशा के लिए भरे रहेंगे और किसी भी तरह की दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा।

घरेलू खाद्य संकट के निपटारे की ओर बढ़ेगा कदम

आजकल आए दिन कहीं ना कहीं कोई समस्या चलती रहती है, ऐसी ही कुछ चीजों से खाद्य संकट पैदा होना जाहिर सी बात है। जैसे- रूस-यूक्रेन युद्ध, कोरोना महामारी। इसके अलावा आजकल जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक घटनाओं से भी फसलों को नुकसान हो रहा है, जिसका असर किसी भी देश के अन्य भंडार पर सीधे तौर से पड़ता है। ऐसे में भारत ने खाद्य संकट को खत्म करने के लिए कुछ कदम उठाने का फैसला किया है। भारत सरकार अब दुनिया के 'सबसे बड़ा अनाज भंडारण योजना' के विकास-विस्तार पर काम कर रही है।


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इस स्कीम के तहत जल्द ही कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ उपभोक्ता मामलों, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय और खाद्य प्रसंस्करण समेत दूसरे मंत्रालयों के तहत आने वाली कुछ योजनाओं को भी जोड़ दिया जाएगा। ये इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कोरोना महामारी से लेकर यूक्रेन-रूस युद्ध और दूसरी वैश्विक घटनाओं का सीधा असर खाद्य आपूर्ति पर हो रहा है। खाने पीने की सभी चीजों की कीमत बहुत ज्यादा बढ़ गई है, जिससे लोगों में और सरकार में घरेलू खाद्य सुरक्षा की चिंता भी बढ़ रही है।

किया जाएगा साइलो भंडारण तरीके का इस्तेमाल

साइलो भंडारण तकनीक अनाज भंडारण की एक आधुनिक तकनीक है, जो पुराने जमाने में किए गए भंडारण के तरीके से कहीं ज्यादा सुरक्षित मानी गई है। साथ ही, इसमें पहले के मुकाबले ज्यादा अनाज का भंडारण भी किया जा सकता है। इसमें 12,500 टन भंडारण क्षमता के स्टील के टैंक बने होते हैं। पहले गोदाम आदि में बोरियों में भरकर अनाज को रखा जाता था, जिसमें एक के ऊपर दूसरी बोरी रखी जाती थी। बारिश या फिर किसी भी तरह की आपदा के चलते ऐसे में फसलों के बर्बाद होने की संभावना ज्यादा रहती है। लेकिन साइलो भंडारण में आधुनिक तकनीकों से लैस टैंकों में अनाज की सुरक्षित रखा जाता है, जिसमें नुकसान की कोई संभावना नहीं होती।


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अभी कुछ दिन पहले ही बाली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया और वहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, कि मौजूदा उर्वरक की कमी खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है। ऐसे में आधुनिक अनाज भंडारण की योजना पर काम करना भविष्य में फायदेमंद साबित होगा।